Thursday, June 3, 2010

न्याय देते-देते हम अपने साथ अन्याय ना कर बैठें-----कसाब प्रकरण

जिस देश के 90%लोगों को पीने के पानी की सुविधा मुहैया न हो, जिस देश के गांवों को पक्की सड़कें नसीब न हो, जिस देश के बच्चों को गांव में प्राथमिक शाला उपलब्ध न हो। ऐसी आधार भूत समस्याओं से लड़ने वाला देश मात्र एक आदमी को न्याय दिलाने में और स्वस्थ्य रखने में अपना पूरा संसाधन झोंक दे इससे ज्यादा हास्यास्पद बात क्या  हो सकती है?
26/11 के बाद 06/05 ने लोगों में एक आशा जगाई,7मामलों में उम्र कैद और 4मामलों में फ़ांसी शायद भारत के इतिहास की सबसे बड़ी सजा रही होगी। हम विश्व में अपने न्याय का ढोल पीट रहे हैं इसके बाद भी निश्चित है कि भारत को लखवी,हाफ़िज सईद, सलाउद्दीन, और दाऊद कभी नसीब होगा। पाकिस्तान न्यायमुर्ती टहिलयानी के निर्णय को भी मानने से इंकार कर देगा, रही बात हम दोनो के आका अमरिका की, तो उसको अपने यहां के ही आतंकवाद से मतलब है। शहजाद वाले मामले में पाकिस्तान ने 7लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है। अगर पाक न सौपे तो अमरिका में यह कुबत है कि अपने अपराधियों को उन्ही की जमीन से दबोच कर ले जा सकता है। दुर्भाग्य से यह कुव्वत और साहस हमारे में नहीं है,यही हमारी कमजोरी है।
कसाब के के मामले अदालती फ़ैसला आने के बाद देश में दीपावली एवं ईद जैसा माहौल था,लोगों में खुशी थी। जिस तरह से रावण को सांकेतिक रुप से दशहरे में मार कर आज भी हम अन्याय पर न्याय की विजय समझते हैं ऐसा ही अहसास कसाब के मामले में लोगों को हुआ था। लोग मिठाई बांट रहे थे, मोमबत्ती जला रहे थे यहां तक नाच भी रहे थे। पर क्या यह फ़ैसला अंतिम फ़ैसला है? यह तो मुकदमे में फ़ैसले की शुरुवात है, जब हमारी व्यवस्था मौका दे रही है तो सज्जन कसाब क्युं छोड़ने चले? अभी कसाब का सौभाग्य है कि यहां मानवाधिकार वाले लोग बैठे है जो चार बार फ़ांसी देने के निर्णय से आहत हैं। कब कौन जाने मानवता का पुजारी कसाब के लिए आहत मन से दौड़ा चला आए। क्योंकि उनका नक्सली अभियान अधुरा है।
जिस देश में पल-पल आतंकवादी गतिविधियों का खौफ़ लोगों के जेहन में हो,जिस देश में इस खौफ़ के चलते जिन्दगी दांव पर रखकर अपनी रोजमर्रा की गतिविधियां संचालित करने के लिए मजबूर हों, आज भी सरकार गाहे बगाहे भीड़ से बचने की सलाह और अवांछित वस्तुओं को छुने से रोकने की अपील जारी करती है। ऐसे में कसाब को न्याय दिलाने के नाम पर आम आदमी के जान माल के साथ खिलवाड़ तो नही कर रही है?  क्या यहां के हुक्मरानों ने इतिहास से कुछ नहीं सीखा है, चाहे कोई भी, किसी की भी सरकार हो सबका रवैया एक जैसा है। दुर्भाग्य से किसी में भी वो जज्बा नहीं है कि इन हालातों से टक्कर ले सके। जिस देश का गृहमंत्री(पूर्व) अपनी बेटी को रिहा करवाने के लिए आतंकवादियों से समझौता करने के लिए मजबूर हो तो दूसरों से क्या उम्मीद करें। अगर तत्कालीन गृहमंत्री सीना ठोक कर कहते कि मेंरी बेटी शहीद हो जाएगी पर यह देश आतंकवादियों को नहीं छोड़ेगा? पर वे यह सब क्यों सोचने लगे? कंधार कांड की यादें अभी लोगों के जेहन से नही गयी हैं।
कसाब को सुरक्षित रखकर न्याय दिलाने की प्रक्रिया के नाम से अपनी हरकतों से पुरे देश को ही असुरक्षित कर रहे हैं। फ़िर कोई आतंकवादी आएगा बड़े कारनामों को अंजाम देगा, फ़िर कोई आतंकवादी विमानों अपहरण करेगा और फ़िर हाफ़िज सैइद और सलाउद्दीन जैसे खुंखार आतंकवादी नाचते-नाचते जेल से रिहा होगें। वो भी किसी मंत्री के साथ पूरे मुआवजे के साथ विदा होगें। कसाब को रखकर हम फ़िर उन्ही परिस्थितियों का निर्माण कर कुछ घटनाएं होने की बाट जोह रहे हैं।
इन सबके बीच 165 मासूम लोगों को मौत के घाट उतारने वाला व्यक्ति बिरयानी खाकर आपरेशन करवा कर  पाकिस्तान पहुंच जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होगा। (जैसा की बताया जा रहा है कि उसे हार्निया है) कब कौन सा जहाज हाईजैक हो जाए और सरकार मात्र मूक दर्शक बनकर रह जाए,क्योंकि इस फ़ैसले के बाद आतंकवादी भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रहेंगे। कसाब की गर्दन इस तरह से नपना उन्हे मंजुर नहीं है। उनकी एक भी हरकत हमारे सैकड़ों लोगों की जान का सौदा मात्र है। वैसे भी पाकिस्तान के पास निरपराध सरबजीत तुरुप का इक्का है।
अब समय आ गया है कि न्याय की समीक्षा करें, अब समय आ गया है कि आतंकवादियों को अचार जैसे सुरक्षित लंबे समय तक रखने से तौबा करें, अब समय आ गया है कि इन पर खर्च ना कर देश के नागरिकों पर आर्थिक बोझ ना बढाएं। अब समय आ गया है कि किसी भी निर्णय को लंबा खींच कर न्याय के नाम पर सहुलियत देना बंद करें। कैसी विडम्बना है कि अपराध करने वाला हमसे ही सबूत मांगे और खारिज एक बार ही नहीं तीन बार करे, उससे ज्यादा तौहीन क्या हो सकती है? कहीं आगे चल कर कोर्ट के फ़ैसले को भी मानने से इंकार कर सकता है। देशवासी 06/05 को मनाने के बदले उस दिन का इंतजार करें जिस दिन इस दरिंदे की गर्दन नप न जाए।

04/06/2010

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